Monday, 31 August 2015

Dadich77-RMD सामान्य ज्ञान,राष्ट्रीय आंदोलन, General Knowledge in Hindi 10

                                         : राष्ट्रीय आंदोलन नोट्स भाग-2:
प्रिय पाठकों,
हम आपको भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध करवाएंगे l आज हम आपको को नोट्स का भाग-2 उपलब्ध करा रहें है l

रोलेक्ट एक्ट (मार्च 18, 1919)
इस अधिनियम ने सरकार को किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुक़दमे के संदेह के आधार पर गिरफ्तार करके उसे जेल मे डालने की निरंकुश शक्तिया प्रदान की गयीl
जलियांवाला बाग नरसंहार (अप्रैल 13, 1919)
9 अप्रैल 1919 को डॉ. किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ़्तारी का लोगो ने जम कर विरोध किया l इस गिरफ़्तारी के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर केजलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया, इस सभा में एकत्र लोगो पर जनरल डायर ने गोलियां चलने का आदेश दे दिया l जिसके परिणाम स्वरूप सेंकडों पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए और हजारों घायल हुए l विरोध सवरूप रविंदरनाथ टगोर ने नाइटहुड की पादपी लौटा दी l    
मार्च 1940 को सरदार उधम सिंह ने डायर की उस वक्त हत्या दी जब वह लन्दन के काक्सटन हॉल में एक मीटिंग को संबोधित कर रहा था l
  
हंटर समिति की रिपोर्ट
जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए एक गैर-सरकारी  समिति की स्थापना की गयी l जिसके अध्यक्ष हंटर थे, वह "स्कॉटलैंड के न्याय कॉलेज' के सीनेटर थे l

खिलाफत आंदोलन (1919-20)
प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की के खलीफा के विरुद्ध ब्रिटिश सरकार के निति से भारतीय मुसलमान क्षुब्ध थे l इसके विरोध सवरूप दो भाइयों मोहमद अली और शौकत अली ने खिलाफत आंदोलन को प्रारंभ किया l

असहयोग आंदोलन (1920-22)
असहयोग आंदोलन आंदोलन गाँधी जी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम व्यापक आंदोलन था l
असहयोग आंदोलन आंदोलन में सम्मिलित कार्यक्रम थे
1. पदवियों को वापिस कर देना l
2. सरकार से संबद्ध शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार
3. अदालतों का बहिष्कार
4. विदेशी कपड़ों का बहिष्कार
5. करों का चुकाना

चौरा चौरी  की घटना (1922)
इस घटना में जो लोग असहयोग और खिलाफत आंदोलन में पुलिस के साथ संघर्ष करते हुए हिंसक हो गयी l जिसके परिणाम सवरूप हिसक भीड़ ने पुलिस चोकी में आग लगा दी और इस घटना में 22 पुलिस कर्मी शहीद हुए l    

स्वराज पार्टी (1922)
उस समय उपनिवेशिक सत्ता के विरोध संघर्ष को आगे बदने के लिए एक नई राजनितिक रणनीति बनायीं गयी, जिसकी वकालत C.R. दास और मोतीलाल नेहरु ने की l मोती लाल नेहरु और C.R दास ने इस रणनीति को गया अधिवेशन (1922) में प्रस्तुत किया l कांग्रेस में बहुत से नेता थे जैस वल्लभभाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद और C. राजगोपालाचार्य इस परिषद के प्रवेश के विरुद्ध थे l मोती लाल नेहरु और C.R दास ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और इन्होने ने स्वराज पार्टी बना ली l   

साइमन कमीशन ((1927)
भारत में राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करने के लिए और आगे सुधारों और संसदीय लोकतंत्र के विस्तार से अवगत करने के लिए जॉन साइमन के अधीन एक समिति गठित की गयी l भारतीय नेताओं ने इस समिति का विरोध किया क्योंकि इस समिति में कोई भी भारतीय नहीं था l इसका का विरोध करने पर लाहौर में लाला लाजपत राय को  लाठीचार्ज में पीटा गया था। सन 1928 में उनका निधन हो गया।    

नेहरू की रिपोर्ट (1928)
नेहरू रिपोर्ट अगस्त, 1928 ई. में प्रस्तुत की गई थी l  पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारतीय संविधान के मसौदे को तैयार करने के लिये एक आठ सदस्यों वाली समिति बनाई गई थी। इस समिति ने प्रस्तावित संविधान का जो प्रारूप प्रस्तुत कियाउसे ही 'नेहरू रिपोर्टके नाम से पुकरा गया l मोती लाल नेहरु इसके प्रमुख प्रारूपक थे l  

जिन्ना के 14 सूत्र (14 Points)  (मार्च 9, 1929)
मुस्लिम लीग के प्रमुख नेता जिन्ना ने नेहरु रिपोर्ट को नही स्वीकारा l इसके बाद जिन्ना ने 14 सूत्री मांग पात्र तैयार किया, जो जिन्ना के 14 सूत्री मांगे कहलायी l     

लाहोर अधिवेशन (1929)
ये वार्षिक अधिवेशन था जिसका आयोजन दिसम्बर 1929 में लाहौर में किया गया, इसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरु ने की, इस अधिवेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज (Complete Independence) को राष्ट्रीय आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य बनाया 31 दिसंबर1929 परअपनाये गए नए झंडे, तिरंगे फहराया गया था और 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में बनाने की घोषणा की गयी

सविनय अवज्ञा आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रथम चरण  
सन 1929 में कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज या पूरी तरह से सवतंत्रता का आंदोलन का लक्ष्य निर्धारित किया l 31 जनवरी 1930 में गाँधी जी ने अपनी 11 सूत्री मांगो पर लार्ड इरविन को अल्टीमेटम दिया l गाँधी जी ने इरविन से कहा या तो वह 11 सूत्री मांगो को मान ले नहीं तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर देगी l मांग को ब्रिटिश सरकार ने अस्वीकार कर दिया l इसलिए गाँधी जी ने डंडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया l      

प्रथम गोलमेज सम्मलेन
यह पहला सम्मलेन था जो ब्रिटिश और भारतीयों को सामान रूप से शामिल करने के उद्देश्य से आयोजित की गया l इसका आयोजन लन्दन में साइमन कमीशन से चर्चा करने के लिए किया गयाl
भारतीय राष्टीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, उदारवादी और कुछ अन्य दलों ने इसका विरोध किया l

गाँधी इरविन समझौता
दो पक्षों (सरकार की ओर से इरविन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से गाँधी) ने इस समझोते पर  51931 मार्च को हस्ताक्षर किये l इसके परिणाम सवरूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापिस ले लिया और वह दूसरे गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने के लिए राजी हो गयी l      

दूसरा गोलमेज सम्मेलन
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधी के रूप में गाँधी जी ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड से मिलाने के लिए लन्दन गए हालांकिसम्मेलन में जल्द ही अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर गतिरोध उत्पन्न हो गया और इस बार पृथक निर्वाचक की मांग केवल मुस्लिम अपितु दलित वर्गभारतीय ईसाइयों और एंग्लो द्वारा भी की जाने लगी l   

सविनय अवज्ञा आंदोलन का दूसरा चरण 
दूसरे गोलमेज सम्मेलन के असफल होने पर, कांग्रेस की कार्यकारणी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुन: प्रारंभ कर दिया l

सांप्रदायिक पुरस्कार (अगस्त 16,1932)
इस पुरस्कार घोषणा रामसे मैकडोनाल्ड के द्वारा की गयी l  यह अंग्रेजों की फूट डालो और राज नीति दिखाया। इस पुरस्कार की घोषणा ने अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति को दर्शया l इस पुरस्कार में मुस्लिम, सिख, आंग्ल भारतीय,महिलयों को प्रतिनिधित्व देने की बात की गयी, उस समय गाँधी जी जो की येरवडा जेल में थे, उन्होंने ने अपना प्रथम आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया

पूना समझोता (25 सितंबर 1932)
सांप्रदायिक पुरस्कार की घोषणा और गांधीजी के अनशन से तेजी से जनाक्रोष पनपा l राजनेताओं जैसे मदन मोहन मालवीय, B.R आंबेडकर और M.C. राजा सक्रीय हो गए l इस घटनाक्रम के परिणाम सवरूप पूना समझोता हुआ और गाँधी जी ने 6 दिन (25 सितंबर 1932) बाद अपना अनशन तोड़ दिया l और इस प्रकार से दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन के मांग को वापिस ले लिए गया

तीसरा गोलमेज सम्मेलन (1932):
इस दौरान अधितर राष्ट्रीय नेताओं जेल में थे इसलिए ये निरर्थक साबित हुआ। इसमें भारत सरकार अधिनियम-1935 पारित करने पर चर्चा हुए l

भारत सरकार अधिनयम 1935
1930 में प्रस्तुत की गयी साइमन कमीशन रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार अधिनियम1935 की रचना की गयी नया भारत सरकार अधिनियम को 4 अगस्त 1935 को रॉयल स्वीकृति प्राप्त हुई। इसमें संवैधानिक सुधारो को जारी रखा गया l इसके अतरिक्त इसमें कुछ नई विशेषताओं को भी जोड़ा गया l इसमें संघीय सरकार को उपलब्ध कराया गया l इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान थे :   
1. प्रांतीय स्वायत्तता प्रस्तुत की गयी
2. प्रांतों में द्विशासन को समाप्त कर दिया गया 
न्यूज पेपर हॉकर से राष्ट्रपति भवन तक
 ‘सफलता की कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती है। इसके लिए उपयुक्त संसाधनों का होना भी आवश्यक नहीं होता। सफल बनने के लिए बस सपने देखने पड़ते हैं, फिर उन्हें पूरा करने का प्रयास करना पड़ता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति तथा भारत में मिशाइल कार्यक्रम के जनक डॉ. .पी.जे. अब्दुलकलाम भी एक ऐसे नायक थे जिन्होंने सीमित संसाधनों के बीच भी ऊँचे सपने देखने नहीं छोड़े। उनका मानना था  किसपने देखना उन्हें दृढ़ संकल्प से सार्थक करना आपका जीवन-दर्शन होना चाहिए। इनके इसी जीवन-दर्शन ने उन्हें एक न्यूजपेपर हॉकर से गणतंत्र भारत के राष्ट्रपति पद पर पहुँचा दिया। आप भी सफल बनने के लिए डॉ. कलाम के जीवन-दर्शन पर अमल करें।

डा. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वर नामक स्थान पर एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। इनके पिता जेनुल्लाब्दीन नाव किराये पर देने का व्यवसाय किया करते थे। इनकी माता जी श्रीमती आशी अम्मा एक धार्मिक प्रवृत्ति की दयालु महिला थीं। इनका परिवार सीधा साधारण परिवार था जो दिखावे से बिल्कुल दूर रहता था। इसका प्रभाव डॉ. कलाम के विचारों पर पड़ना लाजमी था। वह भी व्यर्थ के दिखावे तथा चमक-दमक से दूर ही रहते हैं। संभवतः यह चारित्रिक गुण भी उनकी सफलता का कारण बना।
सभी के जीवन में कुछ कुछ उतार चढ़ाव आते ही रहते हैं। इनके जीवन में भी ऐसा हुआ। जब वह मात्रा दस वर्ष के थे उस समय द्वितीय विश्व-युद्ध छिड़ गया। युद्ध की विभीषिका का प्रभाव इनके जीवन पर भी पड़ा। परिवार आर्थिक तंगी की चपेट में गया। परिवार का भरण-पोषण एक चुनौती बन गया। पर नाविक कब तूफानों से घबराते हैं। संघर्ष के मोल को जानने वाले कब संघर्ष से मुँह मोडते हैं? ऐसा ही कलाम ने भी किया, मात्रा दस वर्ष की अल्प आयु में वह सुबह चार बजे उठकार पहले गणित की ट्यूशन पड़ने जाते थे। उसके पश्चात् तीन किलोमीटर पैदल चलकर रेलवे स्टेशन पर अपने चाचा के साथ अखबार के बंडल ले जाते थे। कोई कल्पना कर सकता है कि एक दस वर्ष का बालक अपने सपने साकार करने के लिए इतना संघर्ष कर सकता है। दस वर्ष की आयु में ही वह जीवन की वास्तविकता से अवगत हो गए। सोचो यदि कलाम हिम्मत हार कर वहीं जिंदगी से समझौता कर लेते अर्थात् पढ़ाई या अखबार बेचने के कार्य में से एक को चुनते तो क्या वह सफल बन पाते। उन्होंने समय और परिस्थितियों को देखते हुए दोनों ही कार्यों को करने का फैसला किया। हालांकि दोनों कार्य एक साथ करने में परिश्रम अधिक था। पर जिन्हें अपने सपनों को हकीकत में बदलना होता है, वे कहाँ मेहनत से घबराते है। उन्हें तो बस अपनी मंजिल ही दिखती है। डॉ. कलाम को सुबह चार बजे उठकर पहले पढ़ाई के लिए जाना पड़ता था। पढ़ाई उनके कैरियर की दृष्टि से आवश्यक थी। फिर कमाई के लिए जाना पड़ता था। उस समय के आर्थिक तंगी की स्थिति में कमाई उनके परिवार के भरण पोषण के लिए आवश्यक थी। मात्रा दस वर्ष की आयु में ही इन्होंने कितना संयम और सूझ-बूझ दिखाई। यही संयम और सूझबूझ इनकी सफलता का रहस्य बना। आप भी इस संयम और सुझबूझ को जीवन में अंगीकृत करके सफल बन सकते हैं।
इनके अध्यापक ने बचपन में इन्हें इच्छा (Desire) विश्वास (Belief) तथा आशाएँ (Expectation) तीन शब्दों को जीवन का आधार बनाने की सीख दी। इन तीन शब्दों ने ही इनके जीवन की दिशा निर्धारित की। आप भी सफल बनना चाहते हैं, तो इन तीनों शब्दों को अपने जीवन में उतार लें। सफल बनने के लिए सर्वप्रथम इसकी इच्छा मन में जगाएं। तत्पश्चात उसके प्रति मन में विश्वास जगाएं कि ऐसा कर आप सकते है। इच्छा के प्रति सदैव आशान्वित रहे। जो भी आप पाना चाहते है, वह एक दिन आपके जीवन में आकर रहेगा। आशाओं अर्थात् उम्मीदों का साथ कभी छोड़े। उम्मीदें ही आपका हौंसला बनेगी। हौंसले से आपका विश्वास मजबूत होगा। सफलता पाने के लिए इन तीन शब्दों से श्रेष्ठ कोई शब्द नहीं है। यह आप पर निर्भर करता है, आप इन्हें किस रूप में आपनाते है।
रामेश्वर में प्राथमिक स्तर की पढ़ाई करने के पश्चात इन्होंने हाईस्कूल शवार्टजश् हाई स्कूल रामानाथ से पूरा किया। इसके पश्चात इन्होंने सैंट जोजिफ कालेज से बी.एस.सी. की। अगर डॉ. कलाम चाहते तो बी.एस.सी करने के पश्चात के कोई भी नौकरी कर सकते थे। मगर वह मद्रास इंस्टिट्यूट आफ टेक्नालाजी से ऐरोनेटिक इंजीनियरिंग करना चाहते थे। यहाँ आर्थिक समस्या इनके आड़े गई। इस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए इन्हें एक हजार रुपये की आवश्यकता थी जोकि उस समय के अनुसार एक बड़ी राशि थी। सपने ऊँचें पर संसाधन सीमित। एक ऐसी स्थिति जहाँ उगलते बनता था, निगलते बनता था। समझौता करें तो महान वैज्ञानिक कैसे बनें। समझौता करें तो धन की व्यवस्था कैसे हो। डॉ. कलाम जैसे व्यक्तित्व कहाँ हार मानने वाले होते हैं। उन्हें मालूम था, इच्छा दृढ़ हो तो रास्ते स्वयं निकल आते है। हुआ भी कुछ ऐसा ही इनकी बहन ने इन्हें पाठ्यक्रम में प्रवेश की राशि उपलब्ध करवाई।
कलाम के जीवन की दो घटनाए एक तो जीवन यापन के लिए मात्रा दस साल की आयु में अखबार बेचना तथा दूसरे एम.आई.टी एयरोनाटिक इंजीनियर पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए मात्रा एक हजार रुपये की फीस के पैसे भी उपलब्ध होना, किसी भी व्यक्ति के विश्वास को डगमगा सकती थी। उसे समझौता करने के लिए विवस कर सकती थी। यह दोनों घटना सही अर्थों में इनके जीवन में अग्नि परीक्षा की घड़ी थी। जहाँ तनिक सा धैर्य खोने पर इनका विश्वास डगमगा सकता था। जिससे नकारात्मक विचार उत्पन्न हो सकते थे। इन्होंने अपने विश्वास को दोनों ही स्थिति में नहीं डगमगाने दिया। इन्होंने बुलंदियों पर पहुँचने के जो सपने देखे उस पर वह अडिग थे। हालांकि इन्हें मालूम था मंजिल काफी दूर है, रास्ता कठिन है। मुश्किलों आना लाजिमी है। वह मुश्किले से घबराते तो शायद ही आज देश को उनके जैसा महान वैज्ञानिक मिल पाता। उन्होंने घबराने के स्थान पर संघर्ष करना स्वीकार किया। उन्होंने किसी भी स्थिति में हार मानने का फैसला किया। यही फैसला उनकी जीत बना।
 लाल बहादुर शास्त्राी, अब्राहम लिंकन तथा डाॅ. कलाम, तीन ऐसे चरित्रा है, जो बहुत ही विषम परिस्थितियों से होकर गुजरे। एक के पास नाव से नदी पार करने के लिए पैसे नहीं, दूसरे के पास पुस्तक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। तीसरे को जीवन यापन के लिए अखबार बेचना पड़ा। तीनों ने विषम आर्थिक परिस्थितियों का समाना किया। तीनों ने समझौता करने के स्थान पर संघर्ष करना ही उपयुक्त समझा। इन तीनों ने दिखा दिया कि इच्छा दृढ़ हो तो सफलता मिलकर ही रहती है। तीनों कभी भाग्य के पिछलग्गू नहीं बनंे। तीनों ने अपने आर्थिक स्थितियों को नहीं कोसा। तीनों ने ही इसे सहर्ष स्वीकार करके इसका डटकर सामना किया।
एयरोनाटिक इंजीनियर बनने के पश्चात् डॉ. कलाम ने डी.टी.डी एंड पी (वायु) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के रूप में 250/- मासिक पर नौकरी कर ली। यहीं से प्रारंभ हुआ डा. कलाम का महान वैज्ञानिक बनने का सफर।
इन्हें सन् 1997 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी 25 जुलाई 2002 को भारतीय गणराज्य के सर्वोच्च पद भारत के राष्ट्रपति का पद ग्रहण करना। यह था एक दस वर्ष की आयु में अखबार बेचने वाले बालक की सफलता का अंतिम पड़ाव।
एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक, अध्यापक तथा पूर्व राष्ट्रपति के रूप में आज कालम को समूची दुनिया जा चुकी है। इन्होंने सफलता के लिए कभी भी सीमित संसाधनों का रोना नहीं रोया। वह जहाँ थे और जिस परिस्थिति में थे वहीं रहकर इन्होंने संघर्ष किया। इन्होंने बुलंदियों पर पहुँचने की इच्छा जगाई, स्वयं में विश्वास जगाया वह एक दिन बुलंदियों पर पहुंचेंगे। इसके लिए उन्होंने उम्मीदों का दामन कभी नहीं छोड़ा। इच्छा ऊँची थी, साधन सीमित से, उम्मीदें उन्हें पल-पल प्रेरित करती थीं। अंत में विश्वास की शक्ति ने उन्हें सब बाधाओं पर विजय प्राप्त करवाई।
स्वयं डॉ. कलाम का कहना है किसितारों को छू पाना लज्जा की बात नहीं, लज्जा की बात है, मन में सितारों को छूने का हौंसला ही होना। इस प्रकार के मनोबल के साथ जीने वाला आखिरकर कैसे जीवन में असफल हो सकता है। डॉ. कलाम की ये उक्ति उन लोगों के लिए मार्ग-दर्शिका बन सकती है जो प्रत्येक स्थिति में सफल बनना चाहते है। जो मात्रा भाग्य के सहारे जीवन यापन करते हुए, पुरुषार्थ को भूले बैठे हैं, उन्हें भी इन उक्तियों को जीवन में उतार कर पुरुषार्थ करना प्रारंभ कर देना चाहिए। जिससे स्वयं ही उनका भाग्य उज्ज्वल बन सके।

आज भले ही वह महान व्यक्तित्व हमारे बीच नहीं पर उनका व्यक्तित्व सदैव करोड़ो भारतीयों के लिए अनुकरणीय रहेगा l ऐसे महान व्यक्तित्व को एसएससी अड्डा की समस्त टीम ही और से कोटि-कोटि नमनl

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