भारतीय राजव्यवस्था : संविधान की प्रस्तावना
1) अमेरिका के संविधान में सबसे पहले प्रस्तावना प्रारंभ की गयी थी l प्रस्तावना शब्द का प्रयोग संविधान के परिचय या संविधान की भूमिका के सन्दर्भ के रूप में किया जाता है l यह संविधान का सारांश या सार होता है।
2) एन. ए. पालखीवाला, प्रख्यात विधिवेत्ता और संविधान विशेषज्ञ का मानना है, प्रस्तावना, ‘संविधान का परिचय पत्र” (identity card of the Constitution) है l
3) भारतीय संविधान की प्रस्तावना, ‘उद्देश्य संकल्प’ पर आधारित है, जिसका प्रारूप पंडित नेहरु ने बनाया और संविधान सभा ने स्वीकार किया l
4) इसमें 42वें संविधान शंसोधन में शंशोधन किया गया, जिसमें इसमें तीन शब्द समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द को जोड़ा गया l
5) अपने मौजूदा स्वरूप में प्रस्तावना इस प्रकार से है :
“हम भारत के लोग, भारत को [सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंध निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य] बनाने के लिए तथा उसके सभी नागरिकों को,
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक, विचार, विश्वास धर्म
और उपासना की सवतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समानता
प्राप्त करने के लिए
तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की गरिमा [राष्ट्र की एकता और अखंडता ] सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई. को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्माप्रित करते हैं ”
प्रस्तवना में सम्मिलित महत्वपूर्ण शब्द :
1. सम्प्रभुत्व
सम्प्रुभता शब्द का अर्थ है सर्वोच्च या स्वतंत्र। भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रुभता सम्पन्न राष्ट्र है। यह सीधे लोगों द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार द्वारा शासित है तथा यही सरकार कानून बनाकर लोगों पर शासन करती है।
2. समाजवादी
समाजवादी शब्द संविधान के 1 9 76 में हुए 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है। जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है। सरकार केवल कुछ लोगों के हाथों में धन जमा होने से रोकेगी तथा सभी नागरिकों को एक अच्छा जीवन स्तर प्रदान करने की कोशिश करेगी।
3. धर्मनिरपेक्ष
धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान के 1 9 76 में हुए 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चीत करता है। भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। यह ना तो किसी धर्म को बढावा देता है, ना ही किसी से भेदभाव करता है। यह सभी धर्मों का व एक समान व्यवहार करता है सम्मान करता है। हर व्यक्ति को अपने पसन्द के किसी भी धर्म का उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है। सभी नागरिकों, चाहे उनकी धार्मिक मान्यता कुछ भी हो कानून की नजर में बराबर होते हैं। सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में कोई धार्मिक अनुदेश लागू नहीं होता।
4. लोकत्रांत्रिक
भारतीय संविधान प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था की गयी है जिसके अंतर्गत, कार्यपालिका अपनी सभी नीतियों और कार्यो के लिए विधान पालिका के प्रति उत्तरदायी है l सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, आवधिक चुनावों, कानून का शासन, स्वतंत्र न्यायपालिका और निश्चित आधार पर भेदभाव का अभाव भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र की अभिव्यक्ति करते हैं l
5. गणतंत्र
राजशाही, जिसमें राज्य के प्रमुख वंशानुगत आधार पर एक जीवन भर या पदत्याग करने तक के लिए नियुक्त किया जाता है, के विपरित एक गणतांत्रिक राष्ट्र के प्रमुख एक निश्चित अवधि के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होते है। भारत के राष्ट्रपति पांच वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचन मंडल द्वारा चुने जाते हैं।
6. न्याय
भारतीय संविधान की प्रस्तावना वर्णित ‘न्याय’ शब्द न्याय के तीन रूपों को अंगीकृत करता है—सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक न्याय l न्याय की अवधारणा को सुनिश्चित करने के लिए संविधान में मौलिक अधिकार और निदेशक सिद्धान्त को सम्मिलित किया गया l
7. स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का अर्थ है किसी व्यक्ति विशेष की गतिविधियों में अनावश्यक हस्तक्षेप और प्रत्येक व्यक्तित्व के विकास दे लिए सामान अवसर प्रदान करना l प्रस्तवना सुनिश्चित करती है की प्रत्येक नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, निष्ठा और उपासना का के अधिकार मौलिक अधिकारों के रूप में प्रदान किये गए है, इन अधिकार्कों के उलंधन की स्थिति में कोर्ट का में भी जाया जा सकता है l
8. समानता
इस शब्द का तात्पर्य है कि अतार्किक विशेषाधिकार की समाप्ति, आगे बढ़ने के सामान अवसर तथा मानव होने के आधार पर सभी सामान है l प्रस्तावना भारत के सभी नागरिकों के लिए समानता स्थिति और अवसर की सुरक्षित करती है । इन प्रावधानों में समानता के तीन आयाम —नागरिक, राजनितिक और आर्थिक को अंगीकृत किया गया है l
9. बंधुता
बंधुता शब्द राष्ट्र के सभी नागरिकों के बीच भावनात्मक सम्बन्धों को दृढ करने का आदर्श प्रस्तुत करता है l संविधान एकल नागरिकता की प्रणाली द्वारा इस भावना को बढ़ावा देता है।
प्रस्तावना का महत्व
प्रस्तावना जिन सिद्धातो पर सविधान आधारित है, उनका बुनियादी दर्शन प्रस्तुत करती है l याग संविधान सभा के भव्य और महान दृष्टि कोण से बनी है, और यह संविधान के निर्माताओं के सपनों और आकांक्षाओं दर्शाती है l
यह संविधान की आत्मा है और सविधान का सर्वाधिक बहुमूल्य अंक है l यह संविधान की कुंजी है l यह सविधान में जाड़ा हुआ मोती है l यह ऐसा मानक है, जिससे संविधान में महत्त्व को आँका जा सकता है l
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